
आज के समय में इन विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) यानी टेस्ट ट्यूब बेबी तकनीक ने निसंतान दंपतियों के लिए नई आशा की किरण जगाई है। यह प्रक्रिया उन लोगों के लिए वरदान साबित हुई है जो प्राकृतिक रूप से गर्भधारण नहीं कर पाते। लेकिन, हर सिक्के के दो पहलू होते हैं। जहाँ एक ओर IVF ने लाखों लोगों को माता-पिता बनने का सुख दिया है, वहीं दूसरी ओर इसके साइड इफेक्ट्स भी कम चौंकाने वाले नहीं हैं। कई बार ये दुष्प्रभाव इतने गंभीर होते हैं कि महिलाओं के होश उड़ जाते हैं।
इस लेख में हम IVF के फायदों के साथ-साथ उन साइड इफेक्ट्स पर भी विस्तार से चर्चा करेंगे, जिनके बारे में अक्सर लोग पूरी तरह से जागरूक नहीं होते।
IVF क्या है?
IVF (In Vitro Fertilization) एक सहायक प्रजनन तकनीक (ART) है, जिसमें महिला के अंडाशय से अंडे निकालकर प्रयोगशाला में पुरुष के शुक्राणु के साथ निषेचित किया जाता है। इसके बाद भ्रूण को महिला के गर्भाशय में स्थानांतरित किया जाता है। यह प्रक्रिया उन दंपतियों के लिए विकल्प है जिन्हें:
- फैलोपियन ट्यूब ब्लॉकेज
- पुरुष इनफर्टिलिटी (कम शुक्राणु)
- एंडोमेट्रियोसिस
- अनियमित ओवुलेशन
- अन्य अज्ञात कारणों से गर्भधारण में समस्या होती है।
IVF के साइड इफेक्ट्स: कैसे उड़ाते हैं होश?
जहाँ IVF सफलता की कहानियाँ सुनने को मिलती हैं, वहीं इसके कुछ ऐसे साइड इफेक्ट्स भी हैं जो शारीरिक, मानसिक और आर्थिक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।
1. हार्मोनल इंजेक्शन के दुष्प्रभाव
IVF प्रक्रिया में महिला को ओवरी स्टिमुलेशन के लिए हार्मोनल इंजेक्शन दिए जाते हैं, ताकि एक से अधिक अंडे बन सकें। इन इंजेक्शन्स के कारण:
- मूड स्विंग्स और चिड़चिड़ापन – हार्मोनल उतार-चढ़ाव के कारण महिलाएं अधिक भावुक या गुस्सैल हो सकती हैं।
- वजन बढ़ना – हार्मोन्स के कारण शरीर में पानी की मात्रा बढ़ सकती है, जिससे वजन बढ़ता है।
- सिरदर्द और थकान – इंजेक्शन के बाद कमजोरी और सिरदर्द की शिकायत हो सकती है।
2. ओवेरियन हाइपरस्टिमुलेशन सिंड्रोम (OHSS)
यह IVF का सबसे गंभीर साइड इफेक्ट है, जिसमें अंडाशय बहुत अधिक सक्रिय हो जाते हैं और फूल जाते हैं। इसके लक्षण:
- पेट में तेज दर्द और सूजन
- सांस लेने में तकलीफ
- मतली और उल्टी
- गंभीर मामलों में किडनी फेलियर तक हो सकता है।
3. एक्टोपिक प्रेगनेंसी का खतरा
IVF में भ्रूण को गर्भाशय में रखा जाता है, लेकिन कभी-कभी यह फैलोपियन ट्यूब में ही विकसित होने लगता है, जिसे एक्टोपिक प्रेगनेंसी कहते हैं। यह जानलेवा हो सकता है।
4. मल्टीपल प्रेगनेंसी (जुड़वाँ या तीन बच्चे)
IVF में सफलता दर बढ़ाने के लिए कई बार एक से अधिक भ्रूण ट्रांसफर किए जाते हैं, जिससे जुड़वाँ या तीन बच्चे होने की संभावना बढ़ जाती है। मल्टीपल प्रेगनेंसी में:
- समय से पहले डिलीवरी का खतरा
- बच्चों का कम वजन
- माँ को हाई ब्लड प्रेशर और डायबिटीज की समस्या
5. इमोशनल और मानसिक तनाव
IVF की प्रक्रिया लंबी और तनावपूर्ण होती है। कई बार असफलता के बाद महिलाएं डिप्रेशन में चली जाती हैं।
6. आर्थिक बोझ
IVF का खर्च बहुत अधिक होता है (एक साइकिल की लागत 1-3 लाख रुपये तक)। कई बार एक से अधिक साइकिल की जरूरत पड़ती है, जो आर्थिक रूप से दबाव डालता है।
IVF के साइड इफेक्ट्स को कैसे कम करें?
- अनुभवी डॉक्टर चुनें – सही क्लिनिक और डॉक्टर से परामर्श लें।
- हेल्दी लाइफस्टाइल – IVF से पहले और बाद में पौष्टिक आहार और योग करें।
- मानसिक सपोर्ट – परिवार और काउंसलर से बात करें।
- सिंगल एम्ब्रियो ट्रांसफर (SET) – मल्टीपल प्रेगनेंसी के खतरे को कम करने के लिए एक ही भ्रूण ट्रांसफर करवाएँ।
निष्कर्ष
IVF निसंतान दंपतियों के लिए एक वरदान है, लेकिन इसके साइड इफेक्ट्स को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। इस प्रक्रिया से गुजरने वाले जोड़ों को पूरी जानकारी और मानसिक तैयारी के साथ आगे बढ़ना चाहिए। सही मार्गदर्शन और देखभाल से IVF की सफलता दर बढ़ाई जा सकती है और दुष्प्रभावों को कम किया जा सकता है।
“सावधानी और सही जानकारी ही IVF की सफलता की कुंजी है!”